मदर डे स्पपेशल- रुखसाना की कहानी जो अपनी बच्ची के लिए 900 किलोमीटर का फासला तय कर रही हैं

                            

'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है. माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है. "मां" एक ऐसा शब्द, जिसके महत्व के विषय में जितनी भी बात की जाए कम ही है. हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षक से लेकर पालनकर्ता जैसी महत्वपूर्ण भूमिकाएं मां ही निभाती है. कहते है, मनुष्य भले ही भगवान का नाम लेना भूल जाए, लेकिन वह मां का नाम लेना कभी नहीं भूलता. कोई भी समस्या हो, सभी लोग हाथ छोर देते है, परन्तु मां कभी साथ नहीं छोड़ती. वह सदैव ही अपने बच्चे के जीवन में ममता का वृक्ष बन कर खड़ी रहती हैं.


25 वर्षीय रुखसाना बानो, इंदौर, मध्य प्रदेश में रहती है. अपनी तीन साल की बच्ची जो कि इतनी छोटी सी उम्र में कोरोना महामारी की बचाने के लिए, उसे लेकर अपने घर अमेठी की ओर पैदल ही निकल गई है. "मेरी बेटी ने कल रात से कुछ नहीं खाया है, मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही है" - रुखसाना. कोई भी परिवाहन चालक उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया है. रुखसाना कहती है कि अगर 'मुझे कोई मदद नहीं मिली तो मैं 900 कि.मी. का फासला पैदल ही तय कर लूंगी'.


यह मां अपनी बच्ची को बचाने के लिए एक संघर्ष कर रही है. रुखसाना और उनका पति इंदौर में ही नौकरी करते है और लोकडाउन बढ़ने के कारण उनके पास कोई भी रोज़गार का जरिया नहीं बचा है. जिससे परेशान होकर उसने खुद अपनी मदद करने का फैसला किया है. रुखसाना के पति आकिब ने साथ चलने से मना कर दिया तो रुखसाना अकेले ही अपनी बच्ची को लेकर निकल पड़ी. मां अपने बच्चो को दुख या पीढ़ा से निकालने के लिए हर प्रयास करती है, बिना खुद के बारे में सोचे हुए.

मां अपनी संतान के रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी विपत्तियों का सामना करने का साहस रखती है, यूंही तो नहीं कहा जाता कि मां अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है.

अनुकृति प्रिया

Comments

  1. Good quality of writing skill and selection of words are too awesome

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