इतनी महिला हिंसा राममोहन रॉय के पूरे मिशन को बर्बाद कर रही है.



राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 15 वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान हो गया था. किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया. उन्होने 1809-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया। उन्होने ब्रह्म समाज की स्थापना की तथा विदेश (इंग्लैण्ड तथा फ़्रांस) भ्रमण भी किया.

राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है, भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है. वह ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता और बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे. उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की.

बाद में जाकर उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी छोड़ने का फैसला किया और समाज के उदार में जुट गए. उन्होंने खुद को देश की सेवा करने में लीन कर लिया. भारत की स्वतंत्रता दिलवाने के अलावा भी वह एक और लड़ाई लड़ रहे थे. उनकी दूसरी लड़ाई अपने ही देश के नागरिकों से थी, और अपने ही समाज मे रह रहे लोगों से थी जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे. राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया, और बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया. धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की. देवेंद्र नाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे. आधुनिक भारत के निर्माता, सबसे बड़ी सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के संस्थापक, ब्रह्म समाज, राजा राम मोहन राय सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.



हमारे देश मे कई ऐसी प्रथाएं थी जिन्हें प्राचीन काल में ही खत्म कर दिया गया परन्तु अभी भी कई ऐसी जगह है जहां यह प्रथाएं अभी भी मान्य है. प्राचीन काल मे एक प्रथा थी, की यदि एक स्त्री के पति की मृतु किसी कारण वश हो जाती है तो प्रथा के अनुसार उस स्त्री को भी अपनी जीवन त्यागनी होगी. राजा राम मोहन रॉय ही वह इंसान थे जिन्होंने इस प्रथा को किसी की स्त्री की किस्मत लिखने से रोका. उनके आंदोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया.

स्त्री को हमेशा से ही प्रथाओं में बंधने की कोशिश की गई है, परन्तु राजा राम मोहन रॉय के प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. उन्होंने अपने आंदोलनों के माध्यम से स्त्रीओ को समाज के घिसे पीटे नियमों में बंधने से रोका. पहले के ज़माने में लड़कियों की शादी 10-12 साल में ही कर दी जाती थी, उन्हें ज़्यादा पढ़ाने लिखने की भी आज़ादी नही थी. यह मोहन जी थे जिन्होंने सामाज में रहते हुए उसी समाज के लोगों से लड़ा और यह प्रथा हटवाई. हालांकि अभी भी कई लोग है जो यह प्रथा निभाते है और अपनी बेटियों को छोटी उम्र में ही बियाह देते है.

शायद इन प्रथाओं से लड़ने के लिए भी फिर एक बार कोई राजा राम मोहन बनेगा. जो समाज मे चल रहे ऐसे काले प्रथाओं को खत्म करने की एक नींव रखेगा. शायद फिर कोई आएगा ऐसे ही जो इन स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों को रोकेगा.

कब तक यह समाज स्त्रीयों को दबाएगा, कब तक उन्हें उड़ने से रोक जाएगा.
कब होगी वह सुबह जिसके बाद किसी भी छोटी बच्ची के किस्मत में शादी का बोझ नही लिखा जाएगा.
राजा राममोहन रॉय वह शख्सियत है जिन्होंने अपने आंदोलनों से सभी को एक वजूद दिया. जहां पहले महिलाओ का वजूद उनके पिता, उसके वाद पति, और फिर बेटे से था, आज वही देश है लेकिन महिलायों का वजूद खुद से बना है. महिलाओ को यह हक़ मिला है कि वो अपने हिसाब से ज़िंदगी चुन सकती है. लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाया है?

महिलायें कितनी भी सफल हो जाए लेकिन क्यों वो रहती एक बाप पर बोझ ही है? क्यों उसे आज भी कहा दूसरे की अमानत जाता है? हमने लड़ाइयां इसलिये तो नही लड़ी थी न, राजा राम मोहन रॉय जी ने हमे प्रथाओं से मुक्त इसलिए तो नही कराया था न. हमे तो खुली हवा में सांस लेने के लिए यह आज़ादी मिली थी, इस खुली साफ़ हाफ में उड़ने के लिए आज़ादी मिली थी, अपने पंख फैला कर ऊंची उड़ाने भरने के लिए आज़ादी मिली थी, फिर ये पंख ही क्यों काट दिए जाते हमारे?

हमे भी उड़ने दो...
बेबाक पंछी बनने दो...

- अनुकृति प्रिया 

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